15 अगस्त और 26 जनवरी - इन दोनों राष्ट्रीय दिवसों पर आयोजित समारोहों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य होता है ध्वजारोहण. एक दिन पहले संदूक में बंद तिरंगा बाहर निकाला जाता है, झाड़ पोंछकर, इस्त्री करके अलग से रख दिया जाता है. फिर डंडे की खोज होती है, रस्सी ढूंढ़ी जाती है और तलाश होती है ऐसे व्यक्ति की जो झंडे की रस्सी में सही गांठ लगाना जानता हो. अगले दिन सुबह- सुबह बांस या पोल को एक निश्चित जगह पर खड़ा कर दिया जाता है. तिरंगे की गठरी बनाकर उसके अंदर फूल या फिर चमकीले रंग बिरंगे कागजों के टुकड़े भर दिये जाते हैं, तिरंगे की पोटली डंडे के शीर्ष पर रस्सी के सहारे बांध दी जाती है. निश्चित समय पर नेताजी आकर सीधे झंडे के पास जाते हैं, आयोजक उन्हें रस्सी का सही सिरा पकड़ाते हैं, नेताजी उसे झटके से खींच देते हैं. आयोजकों की किस्मत ठीक रही, तो एक ही झटके में तिरंगे की पोटली खुल जाती है, फूल झरने लगते हैं, मुड़ा- तुड़ा, सलवटो से भरा तिरंगा पहले तो सहमा हुआ सा, मायूस दिखलाई पड़ता नीचे लटक जाता है. फिर जब कुछ हवा चलती है, तब वह लड़खड़ाता सा फहराने लगता है. पोल के ऊपर गठरी या पोटली बनकर लटक रहे तिरंगे की दयनीय स्थ...
कुछ कहने की इच्छा, कुछ सुनने का मन - Prabhakar Agrawal