रांची के हरमू स्थित श्मशान घाट का नाम ‘मुक्तिधाम’ है जिसे मारवाड़ी सहायक समिति ने बहुत सुंदर बनाया है, बारिश एवं धूप से चिताओं की सुरक्षा हेतु बड़े- बड़े शेड बने हैं, चिता बुझने का इंतजार करने वाले लोगों के लिये बैठने की आरामदायक व्यवस्था है, जिंदगी की क्षणभंगुरता को व्यक्त करते एवं धर्म से नाता जोड़ने की शिक्षा देते दोहे एवं उद्धरण जगह- जगह दीवारों पर लिखे हैं. हर तरह के लोग वहां जाते हैं, दोहे पढ़ते हैं, कुछ देर सोचते भी हैं, मुक्तिधाम से बाहर निकलते ही सब कुछ भूल जाते हैं. इन दोहों का असर दिमाग पर जीवन से भी अधिक क्षणभंगुर होता है.मुक्तिधाम में गुरु नानकदेव रचित एक दोहा मुझे बहुत अपील करता है- “हर घड़ी शुभ घड़ी, हर वार शुभ वार; नानक भद्रा तब लगे जब रूठे करतार.” पता नहीं दूसरे क्या समझते व सोचते हैं.
आज से पचास साल पहले लोग यात्रा पर निकलने से पूर्व मुहूर्त दिखला लेते थे, जिस दिशा में जाना है, उधर उस दिन दिशाशूल तो नहीं, पता कर लेते थे. अमुक- अमुक दिन दाढी नहीं बनवानी, बाल एवं नाखून नहीं कटवाने, इसका भी कड़ाई से पालन करते थे. मूल नक्षत्र में कोई पैदा हो गया, तो अनिष्ट की आशंका दूर करने हेतु शांति- अनुष्ठान करवाने का नियम भी रहा है, पंचक में कोई मर गया तो अपने साथ कुछ और को न ले जाए उसके लिये भी पूजा पाठ करवाने की जरूरत पड़ती है. सौ साल पहले तक 90% लोग मुहूर्त की बातें करते थे, धीरे धीरे यह प्रतिशत घटता गया, अब तो यात्रा के लिये मुहूर्त की बातें 5% से अधिक लोग नहीं करते होंगे. हां, शादी के प्रारंभिक दो चार वर्षों तक बहू को ससुराल से मायके जाना हो, या वहां से वापस आना हो तो अच्छे दिन की गणना अधिकांश लोग करवा लेते हैं. शादी हुये कई वर्ष हो गये तो इन्हीं लोगों के लिये मुहूर्त वगैरह की बातें बेमानी हो जाती हैं. मायके आने- जाने का समय बच्चों के इम्तहान और स्कूल की छुट्टियों से सीधे जुड़ गया है. लेकिन एक बात पर आश्चर्य होता है कि इंटरनेट के युग में भी शादी के मामले में जन्म पत्रिका मिलाना एवं मुहूर्त निकलवाना घटने की जगह बढ़ गया है.
अब जरा गौर करें, सिख लोगों में जन्म कुंडली बनवाने, दिखलाने और मिलाने का कोई चलन नहीं है. इनके यहां शादियां छुट्टियों के दिन गुरुद्वारे में बिना तड़क भड़क के होती हैं, अच्छे या खराब मुहूर्त से इन्हें कोई मतलब नहीं होता. ये लोग लड़के-लड़की का मांगलिक होना भी नहीं देखते. आर्य समाज के लोगों को भी जन्मकुंडली और मुहूर्त वगैरह से कोई मतलब नहीं,उनके लिये भी हर घड़ी, हर दिन, हर व्यक्ति शुभ और अच्छा है. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार तो सिख समाज और आर्य समाज की इन बिना मुहूर्त और जन्मकुंडली मिलाकर की गयी शादियों में अधिकांश को असफल हो जाना चाहिए, तलाक अधिक होने चाहिए, घर में कलह होनी चाहिए, विधुर और विधवाओं की संख्या भी अधिक होनी चाहिए. लेकिन यह बात सर्वविदित है कि सिख कौम अधिक सुखी है, पारिवारिक सुख, शांति एवं समृद्धि में दूसरों से बेहतर है. आर्य समाजियों में भी सनातन हिंदुओं की तुलना में गृहस्थ जीवन में कोई अधिक समस्या नहीं आती. इससे यही सिद्ध होता है कि मुहूर्त वगैरह की बातें सिर्फ हमारा अंधविश्वास हैं, हम अपनी सुविधानुसार कभी इसे मानते हैं, कभी नहीं. शादी के लिये मुहूर्त नहीं दिखलाया ,तो अनिष्ट होगा यही भय बचपन से हमारे मन में परिवार के लोग, संबंधी और मित्र भर देते हैं. हम किसी अनहोनी की आशंका के भय से आजीवन छुटकारा नहीं ले पाते, खास तौर से तब जब मामला अपने बच्चों के भविष्य का हो. मैने अपनी शादी तो बिना लगन वाले दिन कर ली, पर अपने लड़के की शादी में यह हिम्मत नही कर पाया.
ये सारे मुहूर्त तथाकथित ज्योतिषियों द्वारा रचित पंचांगों के आधार पर गणना करके निकाले जाते हैं, पंचांग भी अलग अलग हैं, एक पंचांग कहता है कि इस महीने में अच्छा मुहूर्त नहीं है, दूसरा पंचांग उसी महीने में कई अच्छे मुहूर्त निकाल देगा. ऐसे कुछ महीने हैं जब पंचांगों के अनुसार शादियां वर्जित हैं, पर बंगाली पंचांग उन्हें अच्छे दिन मानता है, क्या ये बंगाली हिन्दू नहीं? दक्षिण भारतीय हिंदुओं के लिये तो ये मुहूर्त और भी अलग होते हैं. हर वर्ष प्रत्येक त्योहार के लिये अलग अलग पंचांग दो अलग- अलग दिन निकाल देते हैं. जब पूरा हिन्दू समाज ही इसमें एकमत नहीं है, फिर इस अंधविश्वास को जारी रखने का फायदा ही क्या? राम और सीता के विवाह के लिये शुभ दिन की गणना सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ ऋषियों वशिष्ठ और विश्वामित्र ने की, लेकिन दोनों के गृहस्थ जीवन की जितनी दुर्दशा हुई भगवान दुश्मनों की भी न करें.
इस वर्ष विवाह के मुहूर्त कम निकले, शादी का मौसम खत्म होने को है. खूब मारा-मारी रही, खास तौर पर शादी की जगह के लिये, सारी धर्मशालाएं एवं अन्य विवाह- स्थल महीनों पहले से ही बुक हो जाते हैं, पंडित, कैटरर, फूलवाले, रसोइये, दर्जी, बैंडवाले, काम करनेवाले, पानवाले सभी के पौ बारह हो जाते हैं, अब बाकी लोग कहां जाएं, उनके यहां शादी कैसे हो, एक ही दिन लगन के चक्कर में एक ही शहर में सैकड़ों शादियां आयोजित होने की खबरें मिलती हैं, हर चीज एवं व्यवस्था का भाव बढ़ जाता है. अच्छी लगन के दिन ही शादी करनी है, सालभर के अन्य दिन खराब जो हैं, खराब दिन शादी हो गयी तो पता नही नवविवाहित जोड़े और उसके परिवार पर क्या विपत्ति आ जाए. गुरु नानक के अनुयायी सिख भाइयों ने विगत सैकड़ों सालों में सब दिनों को बराबर समझकर पंचांग और ज्योतिषियों को दरकिनार करके सिद्ध कर दिया है कि ये सब सिर्फ अन्धविश्वास हैं. नानकदेव जी ने हिंदू पंडितों द्वारा फैलाए गये इन्ही अन्धविश्वासों, हास्यास्पद कर्मकांडों, कुरीतियों और ढकोसलों को दूर करने के उद्देश्य से ही अपना अलग पंथ चलाकर आदर्श उदाहरण खड़ा कर दिया, लेकिन बृहद हिंदू समाज अभी भी शुभ और अशुभ के चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाया.
मेरी ससुराल में एक वृद्ध और विद्वान पंडितजी आया करते थे, जन्मकुंडलियां बनाते और बांचते थे, विवाह एवं अन्य संस्कारों के लिये गणना करके अच्छा मुहूर्त बताते थे. मेरी पत्नी ने बतलाया कि उन्होंने अपनी तीन लड़कियों की शादियां अच्छी तरह ठोंक- बजाकर , जन्मपत्री देख-बांचकर की, लेकिन तीनों की गृहस्थी विपन्न व कलहपूर्ण रही, एक के पति की तो असामयिक मृत्यु भी हो गयी. आहत होकर उन्होंने कुंडली बनाना और देखना- मिलाना ही छोड़ दिया क्योंकि इन सब पर से उनका विश्वास पूरी तरह से उठ गया.
आज यदि लोग फिर से यात्रा पर निकलने से पहले मुहूर्त देखना शुरू कर दें तो तुरंत सारी व्यवस्था ही गड़बड़ हो जाए, प्रशासन पंगु हो जाए, व्यवसाइयों का व्यवसाय चौपट हो जाए, कर्मचारी बर्खास्त कर दिए जाएं, पदाधिकारियों को घर का रास्ता दिखा दिया जाए. यदि हमने यात्रा के लिये मुहूर्त देखना छोड़ दिया है, तो शादी या दूसरे संस्कारों के लिये इसके गुलाम क्यों बने हुए हैं.सिख भाइयों की तरह यदि हम भी ‘हर घड़ी शुभ घड़ी, हर वार शुभ वार’ को सही मानना शुरू कर दें, साल के 365 दिनों में अपनी-अपनी सुविधानुसार हर दिन शादी या अन्य उत्सव हो, आवश्यक सुविधाओं के लिये मारामारी न हो, तो सारी समस्यायें ही खत्म हो जाएं.
आज से पचास साल पहले लोग यात्रा पर निकलने से पूर्व मुहूर्त दिखला लेते थे, जिस दिशा में जाना है, उधर उस दिन दिशाशूल तो नहीं, पता कर लेते थे. अमुक- अमुक दिन दाढी नहीं बनवानी, बाल एवं नाखून नहीं कटवाने, इसका भी कड़ाई से पालन करते थे. मूल नक्षत्र में कोई पैदा हो गया, तो अनिष्ट की आशंका दूर करने हेतु शांति- अनुष्ठान करवाने का नियम भी रहा है, पंचक में कोई मर गया तो अपने साथ कुछ और को न ले जाए उसके लिये भी पूजा पाठ करवाने की जरूरत पड़ती है. सौ साल पहले तक 90% लोग मुहूर्त की बातें करते थे, धीरे धीरे यह प्रतिशत घटता गया, अब तो यात्रा के लिये मुहूर्त की बातें 5% से अधिक लोग नहीं करते होंगे. हां, शादी के प्रारंभिक दो चार वर्षों तक बहू को ससुराल से मायके जाना हो, या वहां से वापस आना हो तो अच्छे दिन की गणना अधिकांश लोग करवा लेते हैं. शादी हुये कई वर्ष हो गये तो इन्हीं लोगों के लिये मुहूर्त वगैरह की बातें बेमानी हो जाती हैं. मायके आने- जाने का समय बच्चों के इम्तहान और स्कूल की छुट्टियों से सीधे जुड़ गया है. लेकिन एक बात पर आश्चर्य होता है कि इंटरनेट के युग में भी शादी के मामले में जन्म पत्रिका मिलाना एवं मुहूर्त निकलवाना घटने की जगह बढ़ गया है.
अब जरा गौर करें, सिख लोगों में जन्म कुंडली बनवाने, दिखलाने और मिलाने का कोई चलन नहीं है. इनके यहां शादियां छुट्टियों के दिन गुरुद्वारे में बिना तड़क भड़क के होती हैं, अच्छे या खराब मुहूर्त से इन्हें कोई मतलब नहीं होता. ये लोग लड़के-लड़की का मांगलिक होना भी नहीं देखते. आर्य समाज के लोगों को भी जन्मकुंडली और मुहूर्त वगैरह से कोई मतलब नहीं,उनके लिये भी हर घड़ी, हर दिन, हर व्यक्ति शुभ और अच्छा है. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार तो सिख समाज और आर्य समाज की इन बिना मुहूर्त और जन्मकुंडली मिलाकर की गयी शादियों में अधिकांश को असफल हो जाना चाहिए, तलाक अधिक होने चाहिए, घर में कलह होनी चाहिए, विधुर और विधवाओं की संख्या भी अधिक होनी चाहिए. लेकिन यह बात सर्वविदित है कि सिख कौम अधिक सुखी है, पारिवारिक सुख, शांति एवं समृद्धि में दूसरों से बेहतर है. आर्य समाजियों में भी सनातन हिंदुओं की तुलना में गृहस्थ जीवन में कोई अधिक समस्या नहीं आती. इससे यही सिद्ध होता है कि मुहूर्त वगैरह की बातें सिर्फ हमारा अंधविश्वास हैं, हम अपनी सुविधानुसार कभी इसे मानते हैं, कभी नहीं. शादी के लिये मुहूर्त नहीं दिखलाया ,तो अनिष्ट होगा यही भय बचपन से हमारे मन में परिवार के लोग, संबंधी और मित्र भर देते हैं. हम किसी अनहोनी की आशंका के भय से आजीवन छुटकारा नहीं ले पाते, खास तौर से तब जब मामला अपने बच्चों के भविष्य का हो. मैने अपनी शादी तो बिना लगन वाले दिन कर ली, पर अपने लड़के की शादी में यह हिम्मत नही कर पाया.
ये सारे मुहूर्त तथाकथित ज्योतिषियों द्वारा रचित पंचांगों के आधार पर गणना करके निकाले जाते हैं, पंचांग भी अलग अलग हैं, एक पंचांग कहता है कि इस महीने में अच्छा मुहूर्त नहीं है, दूसरा पंचांग उसी महीने में कई अच्छे मुहूर्त निकाल देगा. ऐसे कुछ महीने हैं जब पंचांगों के अनुसार शादियां वर्जित हैं, पर बंगाली पंचांग उन्हें अच्छे दिन मानता है, क्या ये बंगाली हिन्दू नहीं? दक्षिण भारतीय हिंदुओं के लिये तो ये मुहूर्त और भी अलग होते हैं. हर वर्ष प्रत्येक त्योहार के लिये अलग अलग पंचांग दो अलग- अलग दिन निकाल देते हैं. जब पूरा हिन्दू समाज ही इसमें एकमत नहीं है, फिर इस अंधविश्वास को जारी रखने का फायदा ही क्या? राम और सीता के विवाह के लिये शुभ दिन की गणना सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ ऋषियों वशिष्ठ और विश्वामित्र ने की, लेकिन दोनों के गृहस्थ जीवन की जितनी दुर्दशा हुई भगवान दुश्मनों की भी न करें.
इस वर्ष विवाह के मुहूर्त कम निकले, शादी का मौसम खत्म होने को है. खूब मारा-मारी रही, खास तौर पर शादी की जगह के लिये, सारी धर्मशालाएं एवं अन्य विवाह- स्थल महीनों पहले से ही बुक हो जाते हैं, पंडित, कैटरर, फूलवाले, रसोइये, दर्जी, बैंडवाले, काम करनेवाले, पानवाले सभी के पौ बारह हो जाते हैं, अब बाकी लोग कहां जाएं, उनके यहां शादी कैसे हो, एक ही दिन लगन के चक्कर में एक ही शहर में सैकड़ों शादियां आयोजित होने की खबरें मिलती हैं, हर चीज एवं व्यवस्था का भाव बढ़ जाता है. अच्छी लगन के दिन ही शादी करनी है, सालभर के अन्य दिन खराब जो हैं, खराब दिन शादी हो गयी तो पता नही नवविवाहित जोड़े और उसके परिवार पर क्या विपत्ति आ जाए. गुरु नानक के अनुयायी सिख भाइयों ने विगत सैकड़ों सालों में सब दिनों को बराबर समझकर पंचांग और ज्योतिषियों को दरकिनार करके सिद्ध कर दिया है कि ये सब सिर्फ अन्धविश्वास हैं. नानकदेव जी ने हिंदू पंडितों द्वारा फैलाए गये इन्ही अन्धविश्वासों, हास्यास्पद कर्मकांडों, कुरीतियों और ढकोसलों को दूर करने के उद्देश्य से ही अपना अलग पंथ चलाकर आदर्श उदाहरण खड़ा कर दिया, लेकिन बृहद हिंदू समाज अभी भी शुभ और अशुभ के चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाया.
मेरी ससुराल में एक वृद्ध और विद्वान पंडितजी आया करते थे, जन्मकुंडलियां बनाते और बांचते थे, विवाह एवं अन्य संस्कारों के लिये गणना करके अच्छा मुहूर्त बताते थे. मेरी पत्नी ने बतलाया कि उन्होंने अपनी तीन लड़कियों की शादियां अच्छी तरह ठोंक- बजाकर , जन्मपत्री देख-बांचकर की, लेकिन तीनों की गृहस्थी विपन्न व कलहपूर्ण रही, एक के पति की तो असामयिक मृत्यु भी हो गयी. आहत होकर उन्होंने कुंडली बनाना और देखना- मिलाना ही छोड़ दिया क्योंकि इन सब पर से उनका विश्वास पूरी तरह से उठ गया.
आज यदि लोग फिर से यात्रा पर निकलने से पहले मुहूर्त देखना शुरू कर दें तो तुरंत सारी व्यवस्था ही गड़बड़ हो जाए, प्रशासन पंगु हो जाए, व्यवसाइयों का व्यवसाय चौपट हो जाए, कर्मचारी बर्खास्त कर दिए जाएं, पदाधिकारियों को घर का रास्ता दिखा दिया जाए. यदि हमने यात्रा के लिये मुहूर्त देखना छोड़ दिया है, तो शादी या दूसरे संस्कारों के लिये इसके गुलाम क्यों बने हुए हैं.सिख भाइयों की तरह यदि हम भी ‘हर घड़ी शुभ घड़ी, हर वार शुभ वार’ को सही मानना शुरू कर दें, साल के 365 दिनों में अपनी-अपनी सुविधानुसार हर दिन शादी या अन्य उत्सव हो, आवश्यक सुविधाओं के लिये मारामारी न हो, तो सारी समस्यायें ही खत्म हो जाएं.
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