सुनहले भविष्य का सपना आंखों में संजोए 21 वर्ष का होनहार कस्बाई युवा रवि राज शिकार हो गया है बचकानी गफलत का, क्रूर मीडिआ ने उसे कुछ इस प्रकार बार- बार पेश किया है जैसा किसी आतंकवादी को भी नहीं किया जाता. उसके सिर पर कपडा डालकर चारों ओर से उसे घेरकर ढेर सारे पुलिस के जवान कोर्ट में पेश करने के लिये ले जा रहे हैं – दिन में पचास बार इसी दृश्य को दिखलाकर क्या मकसद पूरा हुआ ? कोर्ट में उसपर मुकदमा चलेगा, लंबा भी खिंच सकता है, उसे कुछ होने का नहीं, छूट जायेगा क्योंकि उसने ऐसा कोई अपराध किया ही नहीं. लेकिन शायद पुलिस और मीडिआ का यह व्यवहार उस होनहार लडके को हमेशा के लिये नॉर्मल जिन्दगी से दूर कर दे, लडका डिप्रेशन में भी जा सकता है, आत्महत्या कर सकता है या फिर स्थायी रूप से अपराधों की दुनिया में जा सकता है. एक तरफ तो तिहाड जेल में शातिर अपराधियों को सुधारने के प्रोग्राम चलाये जाते हैं, दूसरी ओर सस्ती सनसनी के लिये इतने नाजुक मामले को पुलिस और मीडिआ इतने क्रूर और नासमझ तरीके से हैंडिल करती है और पूरा देश चस्के लेता है.
जो कुछ भी इंटरनेट पर सर्वसुलभ था, उसकी सी. डी. बनाकर उसने बाजी डॉटकॉम पर बेचने का इश्तहार दिया, पूरा आइ आइ टी खडगपुर डी पी एस की घटना को अपने अपने कंप्युटर पर देख ही चुका था, बाकी क्या बचा था. यह तो सेक्स का एकदम मामूली दो मिनट का छोटा सा दृश्य था, दो –दो घंटों की ब्लू फिल्में कोई भी कभी इंटरनेट से डाउनलोड करके देख और दिखा सकता है, अधिकांश लोग यह तो समझते हैं कि यह अनैतिक है , लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि यह गैरकानूनी भी है और सजा हो सकती है. सायबर कैफों में हर उम्र के अधिकांश बच्चे क्या करने जाते हैं किसी से छिपा नहीं. सरकार और समाज ने टी वी चैनलों पर लगातार परोसे जा रहे सेक्स पर इतना लचीला रुख अपना रखा है कि नैतिक और अनैतिक के बीच की सीमा रेखा ही गड्ड-मड्ड हो गयी है. आज का किशोर और युवा भ्रमित है, समझ नहीं पा रहा कि क्या और कितना गलत है.
सैकडों हत्याएं करने वाले आतंकवादियों को तो मुख्यधारा में लाने के प्रोग्राम बनाये जाते हैं, हत्यारे उग्रवादियों को माफी इस कारण से दे दी जाती है कि उन्हें उग्रवाद की राह में डालने का दोष सामाजिक विषमता और आर्थिक शोषण का है, फूलन देवी को सांसद बना दिया जाता है, लेकिन इतनी छोटी सी बात पर एक मेधावी और होनहार छात्र को बर्बाद किया जा रहा है. इंजीनियरिंग की आखिरी सेमेस्टर की उसकी पढाई बाकी है, उसे यहां तक पढाने के लिये उसके परिवार ने लाखों रुपयों का कर्ज ले रखा है , सिर्फ इस उम्मीद पर कि नौकरी लगते ही सालभर में चुका दिया जायेगा. लेकिन अब ?
किसी भी इंजीनियरिंग या मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल पर छापा मारा जाये, हर कमरे में कुछ न कुछ अश्लील सामग्री मिल ही जायेगी. वहां का माहौल ही ऐसा रहता है. रैगिंग के दौरान हर जगह गन्दी गालियां और सेक्स की अश्लील बातें धढल्ले से सिखायी जाती हैं, इन प्रोफेशनल कॉलेजों में प्रवेश लेने वाले भोलेभाले मेधावी छात्रों को स्मार्ट बनाने के नाम पर सीनिअर छात्रों के द्वारा पहली शिक्षा सेक्स की ही दी जाती है, यह आज की ही बात नहीं, यह परंपरा विगत सत्तर- अस्सी सालों से चली आ रही है,
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शायद यूरोप की देन हो. उस जमाने में छात्रों के पास अश्लील किताबें और तस्वीरें होती थीं, आज तो 24 घंटे इंटरनेट पर खुला सेक्स सर्वसुलभ है. रैगिंग के दौरान सब कुछ जबर्दस्ती सिखा दिया जाता है, सारे कपडे उतरवाकर सेक्स – प्रक्रियाओं का प्रैक्टिकल भी करवा दिया जाता है, गंदी गंदी गालियां उनकी आपसी बातचीत के नियमित शब्द बन जाती हैं. जो नये छात्र सहयोग नहीं करते, उनसे सबकुछ जबरदस्ती करवाया जाता है, कभी कभी तो सार्वजनिक रूप से अनैतिक समलैंगिक संबन्ध भी बनाने पर मजबूर किया जाता है, एक ओर तो नये छात्र विकट त्रासदी से गुजरते हैं, दूसरी ओर मानसिक विकृति के शिकार सीनिअर छात्र मिलकर मजे लेते हैं. रैगिंग से त्रस्त होकर आत्महत्या की खबरें भी आती हैं, कुछ तो हमेशा के लिये घर लौट जाते हैं. यही नये छात्र जब पुराने हो जाते हैं उन्हें भी पुरानी गलीज परंपरा को बरकरार रख्नने में आनंद आने लगता है. सेक्स तो चीज ही ऐसी होती है. परिवार में तमाम संयम और वर्जनाओं के बीच पले बढे ये कस्बाई छात्र रैगिंग के दौरान पहले तो रेजिस्ट करते हैं, लेकिन फिर उसी रंग में ढल जाते हैं, बल्कि और अधिक बढ-चढ कर.
आखिर रविराज का अपराध कौन और कैसे सिद्ध करेगा, आज तक किसी सायबर अपराधी को कोर्ट से सजा नहीं हुई, हमारे देश में जितना सॉफ्टवेयर इस्तेमाल में है उसका 80% से अधिक गैरकानूनी है, हर ई मेल एकाउंट में रोज ढेरों अश्लील मेल आते हैं, बिना किसी रॉयल्टी के भुगतान के रोज ही ढेरों गाने और फिल्में इंटरनेट से डाउनलोड किये जा रहे हैं, अधिकांश को तो पता ही नहीं होगा कि वे कुछ गैरकानूनी भी कर रहे हैं. पूरी दुनिया में फैले इंटरनेट में वायरस छोडने वाले तो लोगों का करोडों बरबाद करने का मजा ले रहे हैं, उनका तो कोई कुछ बिगाड नहीं पा रहा.
जो भी है, रविराज को चेतावनी देकर माफ कर देना चाहिये. डी.पी.एस. की घटना से सबक लेकर अब समाज को कुछ फैसले तत्काल लेने होंगे. डी.पी.एस. की घटना तो प्रकाश में आ गयी, लेकिन वह तो रोज कहीं न कहीं घट रही है, आउटलुक पत्रिका द्वारा करवाए गए सर्वे के परिणाम न तो हमें चौंकाते हैं और न किसी आंदोलन का कारण बनते हैं, स्कूली लडकियों के गर्भवती होने की बढती संख्या समाज में फुसफुसाहट भी पैदा नहीं करती. बस कभी-कभी संस्कृति – अपसंस्कृति पर दो चार लेख पढने को मिल जायेंगे या वैनेंटाइन डे पर एक आधा उत्साही संस्थाओं द्वारा प्रेमलीला में मगन लडके-लडकियों के जोडों को खदेडने की खबरें आ जायेंगी.
रविराज ने जो कुछ भी किया, उसका कारण इंजीनियरिंग कॉलेजों का माहौल है, मीडिआ द्वारा लगातार परोसी जा रही सेक्स सामग्री है और यह समाज है जिसने आधुनिकता के नाम पर सबकुछ स्वीकार कर लिया है. दोषी हम सब हैं जो पूरे परिवार के साथ बैठकर चैनल बदल-बदल कर लुत्फ लेते हैं और वर्षों से दबाकर रखी गयी अपनी सेक्स हवस को तृप्ति देते हैं. सास-बहुओं वाले अनैतिक संबंधों को स्वीकार्यता प्रदान करने वाले सीरियल हों, या नंगी- अधनंगी हसीनाओं वाले विज्ञापन या कामुक अदाओं से सेक्स उंडेलते गानों के एलबम – सबकुछ तो हम देखते हैं, क्यों ? हमने यह सबकुछ नयी जीवन शैली के रूप में स्वीकार कर लिया है, तो फिर रविराज जैसे अपरिपक्व युवाओं का क्या दोष ?
जो कुछ भी इंटरनेट पर सर्वसुलभ था, उसकी सी. डी. बनाकर उसने बाजी डॉटकॉम पर बेचने का इश्तहार दिया, पूरा आइ आइ टी खडगपुर डी पी एस की घटना को अपने अपने कंप्युटर पर देख ही चुका था, बाकी क्या बचा था. यह तो सेक्स का एकदम मामूली दो मिनट का छोटा सा दृश्य था, दो –दो घंटों की ब्लू फिल्में कोई भी कभी इंटरनेट से डाउनलोड करके देख और दिखा सकता है, अधिकांश लोग यह तो समझते हैं कि यह अनैतिक है , लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि यह गैरकानूनी भी है और सजा हो सकती है. सायबर कैफों में हर उम्र के अधिकांश बच्चे क्या करने जाते हैं किसी से छिपा नहीं. सरकार और समाज ने टी वी चैनलों पर लगातार परोसे जा रहे सेक्स पर इतना लचीला रुख अपना रखा है कि नैतिक और अनैतिक के बीच की सीमा रेखा ही गड्ड-मड्ड हो गयी है. आज का किशोर और युवा भ्रमित है, समझ नहीं पा रहा कि क्या और कितना गलत है.
सैकडों हत्याएं करने वाले आतंकवादियों को तो मुख्यधारा में लाने के प्रोग्राम बनाये जाते हैं, हत्यारे उग्रवादियों को माफी इस कारण से दे दी जाती है कि उन्हें उग्रवाद की राह में डालने का दोष सामाजिक विषमता और आर्थिक शोषण का है, फूलन देवी को सांसद बना दिया जाता है, लेकिन इतनी छोटी सी बात पर एक मेधावी और होनहार छात्र को बर्बाद किया जा रहा है. इंजीनियरिंग की आखिरी सेमेस्टर की उसकी पढाई बाकी है, उसे यहां तक पढाने के लिये उसके परिवार ने लाखों रुपयों का कर्ज ले रखा है , सिर्फ इस उम्मीद पर कि नौकरी लगते ही सालभर में चुका दिया जायेगा. लेकिन अब ?
किसी भी इंजीनियरिंग या मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल पर छापा मारा जाये, हर कमरे में कुछ न कुछ अश्लील सामग्री मिल ही जायेगी. वहां का माहौल ही ऐसा रहता है. रैगिंग के दौरान हर जगह गन्दी गालियां और सेक्स की अश्लील बातें धढल्ले से सिखायी जाती हैं, इन प्रोफेशनल कॉलेजों में प्रवेश लेने वाले भोलेभाले मेधावी छात्रों को स्मार्ट बनाने के नाम पर सीनिअर छात्रों के द्वारा पहली शिक्षा सेक्स की ही दी जाती है, यह आज की ही बात नहीं, यह परंपरा विगत सत्तर- अस्सी सालों से चली आ रही है,
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शायद यूरोप की देन हो. उस जमाने में छात्रों के पास अश्लील किताबें और तस्वीरें होती थीं, आज तो 24 घंटे इंटरनेट पर खुला सेक्स सर्वसुलभ है. रैगिंग के दौरान सब कुछ जबर्दस्ती सिखा दिया जाता है, सारे कपडे उतरवाकर सेक्स – प्रक्रियाओं का प्रैक्टिकल भी करवा दिया जाता है, गंदी गंदी गालियां उनकी आपसी बातचीत के नियमित शब्द बन जाती हैं. जो नये छात्र सहयोग नहीं करते, उनसे सबकुछ जबरदस्ती करवाया जाता है, कभी कभी तो सार्वजनिक रूप से अनैतिक समलैंगिक संबन्ध भी बनाने पर मजबूर किया जाता है, एक ओर तो नये छात्र विकट त्रासदी से गुजरते हैं, दूसरी ओर मानसिक विकृति के शिकार सीनिअर छात्र मिलकर मजे लेते हैं. रैगिंग से त्रस्त होकर आत्महत्या की खबरें भी आती हैं, कुछ तो हमेशा के लिये घर लौट जाते हैं. यही नये छात्र जब पुराने हो जाते हैं उन्हें भी पुरानी गलीज परंपरा को बरकरार रख्नने में आनंद आने लगता है. सेक्स तो चीज ही ऐसी होती है. परिवार में तमाम संयम और वर्जनाओं के बीच पले बढे ये कस्बाई छात्र रैगिंग के दौरान पहले तो रेजिस्ट करते हैं, लेकिन फिर उसी रंग में ढल जाते हैं, बल्कि और अधिक बढ-चढ कर.
आखिर रविराज का अपराध कौन और कैसे सिद्ध करेगा, आज तक किसी सायबर अपराधी को कोर्ट से सजा नहीं हुई, हमारे देश में जितना सॉफ्टवेयर इस्तेमाल में है उसका 80% से अधिक गैरकानूनी है, हर ई मेल एकाउंट में रोज ढेरों अश्लील मेल आते हैं, बिना किसी रॉयल्टी के भुगतान के रोज ही ढेरों गाने और फिल्में इंटरनेट से डाउनलोड किये जा रहे हैं, अधिकांश को तो पता ही नहीं होगा कि वे कुछ गैरकानूनी भी कर रहे हैं. पूरी दुनिया में फैले इंटरनेट में वायरस छोडने वाले तो लोगों का करोडों बरबाद करने का मजा ले रहे हैं, उनका तो कोई कुछ बिगाड नहीं पा रहा.
जो भी है, रविराज को चेतावनी देकर माफ कर देना चाहिये. डी.पी.एस. की घटना से सबक लेकर अब समाज को कुछ फैसले तत्काल लेने होंगे. डी.पी.एस. की घटना तो प्रकाश में आ गयी, लेकिन वह तो रोज कहीं न कहीं घट रही है, आउटलुक पत्रिका द्वारा करवाए गए सर्वे के परिणाम न तो हमें चौंकाते हैं और न किसी आंदोलन का कारण बनते हैं, स्कूली लडकियों के गर्भवती होने की बढती संख्या समाज में फुसफुसाहट भी पैदा नहीं करती. बस कभी-कभी संस्कृति – अपसंस्कृति पर दो चार लेख पढने को मिल जायेंगे या वैनेंटाइन डे पर एक आधा उत्साही संस्थाओं द्वारा प्रेमलीला में मगन लडके-लडकियों के जोडों को खदेडने की खबरें आ जायेंगी.
रविराज ने जो कुछ भी किया, उसका कारण इंजीनियरिंग कॉलेजों का माहौल है, मीडिआ द्वारा लगातार परोसी जा रही सेक्स सामग्री है और यह समाज है जिसने आधुनिकता के नाम पर सबकुछ स्वीकार कर लिया है. दोषी हम सब हैं जो पूरे परिवार के साथ बैठकर चैनल बदल-बदल कर लुत्फ लेते हैं और वर्षों से दबाकर रखी गयी अपनी सेक्स हवस को तृप्ति देते हैं. सास-बहुओं वाले अनैतिक संबंधों को स्वीकार्यता प्रदान करने वाले सीरियल हों, या नंगी- अधनंगी हसीनाओं वाले विज्ञापन या कामुक अदाओं से सेक्स उंडेलते गानों के एलबम – सबकुछ तो हम देखते हैं, क्यों ? हमने यह सबकुछ नयी जीवन शैली के रूप में स्वीकार कर लिया है, तो फिर रविराज जैसे अपरिपक्व युवाओं का क्या दोष ?
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