जनवरी माह में एक बार फिर नरेन्द्र मोदी ने अपने वाइब्रेंट गुजरात में देश- दुनिया के दिग्गज उद्योगपतियों को इकठ्ठा किया जिनमें रतन टाटा, सुनील मित्तल, के वी कामथ और अंबानी जैसी हस्तियां मौजूद थीं. गुजरात में 12,000 अरब रुपयों के निवेश के नवीन प्रस्ताव आए. हाल के वर्षों में उद्योपतियों और मीडिया ने एक जबर्दस्त हवा बना दी है कि उद्योग स्थापित करने का माहौल गुजरात से बेहतर किसी अन्य राज्य में नहीं. आइये देखें अपने नरेन्द्र मोदीजी ने इन उद्योपतियों के लिये क्या किया है और वहां की आम जनता के लिये क्या- क्या कर रहे हैं.
नैनो प्रोजेक्ट को गुजरात में लाने के लिये नरेन्द्र मोदी ने जमकर राज्य के खजाने को लुटाया. एक लाख रुपये कीमत वाली एक नैनो कार के कारण गुजरात के करदाताओं पर 60,000 रुपयों का बोझ पड़ेगा. मोदी ने रतन टाटा को ऐसा पैकेज दिया है जिसके लिये वे स्वप्न में भी नहीं सोच सकते थे.ग्यारह सौ एकड़ जमीन के साथ सड़क, पानी, बिजली की तमाम बुनियादी सुविधाएं मुफ्त. इसके अलावे 9,570 करोड़ रुपयों का लोन जिसे 20 वर्षों में चुकता करना है, ब्याज सिर्फ 0.1% की अविश्वसनीय दर से. टाटा मोटर्स के प्लांट से निकलने वाले ठोस कचरों को निपटाने एवं दूषित जल के ट्रीटमेंट की व्यवस्था सरकार करेगी. 200 किलोवाट की विद्युत सप्लाई एवं 14,000 घनमीटर प्रतिदिन जल आपूर्ति के अलावे भी अनेक सुविधाएं मोदीजी टाटा को दे रहे हैं. गुजरात की औद्योगिक नीति के विरुद्ध एक और बड़ी छूट दी जा रही है- टाटा मोटर्स अपने यहां 85% स्थानीय लोगों को नौकरी देने को बाध्य न होगी. इतना सब कुछ देते हुए टाटा मोटर्स के प्रोजेक्ट को सरकारी सहमति देने में मोदी को सिर्फ 3 दिन लगे. इसी से पता लगता है कि गुजरात में किसकी चलती है, लालफीताशाही को “बाइ-बाइ” कर दिया गया है, चीफ एक्जीक्युटिव स्ट्रॉंगमैन नरेन्द्र मोदी के नाम से अफसर थर-थर कांपते हैं. पब्लिक के खजाने को इतनी बेदर्दी से लुटाने में मोदी का साथ वहां के प्रशासनिक पदाधिकारियों को भी देना पड़ रहा है, मन से दें या बेमन से, वे किसी भी फाइल पर न तो मोदी की इच्छा के विरुद्ध कोई टिप्पणी लिख रहे हैं और न फाइल को ही लटका पा रहे हैं.
आइए अब सिक्के के दूसरे पहलू पर भी नजर डालें. वर्ष 2008 की रिपोर्ट के अनुसार गुजरात के गांवों में 15-16 साल के आयु वर्ग के 21% लड़के और 30% लड़कियां स्कूल जाना छोड़ देते हैं.3 से 5वर्ष आयु वर्ग के मात्र 54.9% बच्चे कक्षा एक में पहुंचते हैं जबकि पूरे देश का औसत 66.6% है. गणित के जोड़ –घटाव करने तो ये राष्ट्रीय औसत 54.9% से बहुत नीचे हैं, यहां केवल 43.1% सफल हुए, इनसे बेहतर तो छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश के बच्चे निकले. मानव संसाधन के विकास से संबंधित इंडेक्स में गुजरात टॉप से फिसलकर छठे स्थान पर पहुंच गया है. लिंगानुपात में स्थिति बहुत बुरी है, 1000 लड़कों पर 878 लड़कियां.
प्रश्न उठता है कि मोदी के विकास –मॉडल में सिर्फ बड़े उद्योगपतियों को उचित- अनुचित सुविधाएं देकर गुजरात में बड़े उद्योग स्थापित करना ही है या वहां की आम जनता को गरीबी रेखा से ऊपर उठाना भी. मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी को यदि राज्य के खजाने की चाभी वहां की जनता ने बहुत भरोसे के साथ सौंपी है, तो क्या उन्हें यह अधिकार भी स्वतः मिल जाता है कि वे उस खजाने से उद्योगपतियों की संपत्ति दिन दूनी, रात चौगुनी बढ़ाने में मदद करें या आम जनता के लिये रोटी, कपड़ा, मकान ,स्वास्थ्य और शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने में उस खजाने का उपयोग करें. ‘बड़े उद्योगों के विकास से ही गुजरात का विकास” वाले मॉडल को भुनाते हुए भले ही नरेन्द्र मोदी एक के बाद दूसरा और तीसरा चुनाव जीतते रहें, इतिहास ही बताएगा कि उन्होंने गुजरात को कितना बनाया और कितना बिगाड़ा.
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