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समरेश सिंह ध्यान दें! इंजीनियरिंग छात्रों का भविष्य खतरे में

बिहार के इंजीनियरिंग कॉलेजों व दूसरे राज्यों के कॉलेजों में बिहार के छात्रों के लिए आवंटित सीटों के लिए हर वर्ष राज्य स्तरीय संयुक्त प्रवेश प्रतियोगिता आयोजित की जाती है. बिहार सरकार की जो समिति इसका आयोजन करती है, उसने लगातार अपनी अक्षमता व भ्रष्टाचार का परिचय दिया है. प्रश्न पत्रों के लीक होने का मामला तो आम बात है. मंत्रियों, अफसरों व उनके चमचों के अयोग्य बच्चों को बैकडोर से चयनित छात्रों की सूची में ऊपर के स्थान दे देने का मेधा घोटाला भी साथ में जुड़ गया है. गत वर्ष विभिन्न कारणों से इस प्रवेश परीक्षा की तिथियों को तीन-चार बार स्थगित किया गया और परीक्षा अक्तूबर-नवम्बर में आयोजित की गयी. बिहार के बाहर से क्षेत्रीय कॉलेजों में जुलाई में ही सत्र प्रारम्भ हो चुके थे. जब बिहार के कोटे से इन कॉलेजों में छात्र पहुंचे, तब तक पहले सेमेस्टर की पढ़ाई पूरी हो चुकी और परीक्षा की तैयारियां चल रही थी. बिहार के छात्रों की दयनीय स्थिति पर और क्या कहा जा सकता है. 12 राज्यों में एक-एक क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कॉलेज है. आइ.आइ.टी. में प्रवेश न मिल पाने या मनपसंद ब्रांच न मिलने पर रूढ़की, पिलानी व मेसरा आदि कुछ कॉलेजों में तथा रिजनल इंजीनियरिंग कॉलेजों में छात्र जाना पसंद करते हैं. आइ.आइ.टी., रूड़की व मेसरा जैसे कॉलेज स्वतंत्र रूप से अखिल भारतीय स्तर पर प्रवेश प्रतियोगिता आयोजित करते हैं, लेकिन अन्य कॉलेजों में प्रवेश के लिए बिहार के छात्रों को बिहार की संयुक्त परीक्षा में बैठना पड़ता है. हर रिजनल इंजीनियरिंग कॉलेज की आधी सीट उस राज्य के छात्रों के लिए होती है, जहां वह कॉलेज स्थित है. बाकी आधी सीट दूसरे राज्यों के छात्रों में जनसंख्या के आधार पर कोटे के रूप में आवंटित कर दी जाती है. कुछ रिजनल कॉलेजों को तो आइ.आइ.टी. के समकक्ष भी माना जाता है. छात्र इन कॉलेजों में प्रवेश पाने को लालायित रहते हैं.
बिहार की संयुक्त प्रवेश प्रतियोगिता के नतीजों के आधार पर मेधा सूची बनती है और उसके अनुसार छात्रों को अपनी पसंद के कॉलेज व ब्रांच में मिलता है. इस प्रतियोगिता के आधार पर ही जमशेदपुर स्थित रिजनल इंजीनियरिंग कॉलेज की आधी सीटों के लिए तथा मजफ्फरपुर, भागलपुर, पटना व सिंदरी के कॉलेजों की लगभग पूरी सीटों के लिए व अन्य राज्यों के 16 इंजीनियरिंग कॉलेजों में बिहार के लिए निर्धारित कोटे की सीटों के लिए छात्रों का चयन मेधा वरीयता क्रम में किया जाता है. अधिक देर से परिणाम निकलने के कारण बाहर के कॉलेजों में बिहार के छात्रों को अच्छी ब्रांच नहीं मिलती. देर से प्रवेश लेने के कारण पहले सेमेस्टर की परीक्षा में भी ये छात्र अच्छा नहीं कर पाते.
इस बार तो और भी मुसीबत झारखंड के छात्रों के लिए खड़ी हो गयी है. बिहार के भ्रष्ट और पक्षपाती अफसरों के द्वारा आयोजित होने वाली संयुक्त प्रवेश प्रतियोगिता में झारखंड के छात्रों की क्या स्थिति होगी, भगवान ही मालिक है. यदि विज्ञान व प्रावैधिकी मंत्री समरेश सिंह को मई-जून में बुद्धि आयी कि झारखंड के छात्रों के लिए अलग से प्रवेश परीक्षा आयोजित करनी है, तब तो यहां के छात्रों की हालत धोबी के कुत्ते की तरह हो जायेगी. रिजनल इंजीनियरिंग कॉलेजों में अखंड बिहार के लिए आरक्षित सीटों का बंटवारा झारखंड और शेष बिहार के बीच किस अनुपात में होगा और कब होगा? यदि जनसंख्या के अनुपात में हुआ, तो झारखंड के छात्र काफी घाटे में रहेंगे. शेष बिहार की तुलना में झारखंड में मेधावी छात्रों का अनुपात कई गुना अधिक है. आइ.आइ.टी. की प्रवेश प्रतियोगिता में शेष बिहार के मुकाबले झारखंड के छात्र कई गुना अधिक सफल होते है. जो भी करना है, संबंधित विभाग को शेष बिहार व केन्द्र सरकार के संबंधित विभागों के साथ तुरंत बैठ कर जनवरी माह में ही निर्णय ले लेना चाहिए.
इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा जो भी आयोजित करे, उसे मई महीने में ही कर लेना चाहिए ताकि जून के अंत में परिणाम आ जाये. पूरी परीक्षा बहुत ही योजनाबद्ध तरीके से एवं कड़ाई से होनी चाहिए. ताकि प्रश्नपत्र लीक न हो. परीक्षा केन्द्रों पर नकल न हो, परिणाम साफ और निष्पक्ष हो. परीक्षा की तारीख सारे त्यौहारों और दूसरी राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं की तारीखों को ध्यान में रखकर तय की जाये, ताकि बाद में स्थगित न करनी पड़े. आइ.आइ.टी. की प्रवेश परीक्षा व उसके नतीजों के प्रकाशन की तारीख पूर्व निर्धारित रहती है. कभी स्थगित नहीं होती. पूरे भारत में डेढ़ लाख प्रतियोगी बैठते हैं. कभी गड़बड़ी नहीं होती. हम अपने राज्य में ऐसा क्यों नहीं कर सकते?

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