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दो दिन का काम, दो साल में भी नहीं

झारखण्ड स्थित जमशेदपुर के रिजनल इंजीनियरिंग कॉलेज को छोड़ कर देश के अन्य सभी रिजनल कॉलेजों में सत्र 2002-03 के प्रथम सेमेस्टर की परीक्षाएं या तो चल रही हैं या खत्म हो चुकी हैं. झारखण्ड के अभागे विद्यार्थियों की काउंसेलिंग का काम ही अब तक पूरा नहीं हो हुआ. चौथी बार स्थगित हुआ है. झारखण्ड कोटे से इन 17 रिजनल इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश पाने के इच्छुक मेधावी विद्यार्थियों का भविष्य अधर में लटक रहा है.
गत वर्ष भी कुछ् ऐसी ही स्थिति से यहां के मेधावी छात्रों को गुजरना पड़ा था. बिहार और झारखण्ड सरकारों के आपसी झगड़े, मंत्रियों की अपनी प्रतिष्ठा से झूठे प्रश्न, पदाधिकारियों की लापरवाही, इन सभी का खमियाजा उक्त दोनों राज्यों के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों एवं उनके अभिभावकों को बार-बार चुकाना पड़ रहा है. इस वर्ष की संयुक्त प्रवेश परीक्षा भी हमेशा की तरह चार-पांच महीने विलम्ब से हुई. राम-राम करते हुए परिणाम घोषित हुए. सफल विद्यार्थियों में आशा जगी कि देर से सही, लेकिन उन्हें अपनी पसंद के श्रेष्ठ इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश मिल जायेगा. उन्होंने औसत इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश का अवसर छोड़ दिया. मेधा सूची में उच्च स्थान प्राप्त होने के कारण तिरूचिरापल्ली, सूरतमल एवं इलाहाबाद के रिजनल इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश मिलना निश्चित जान कर ये छात्र काउंसेलिंग की प्रतीक्षा में बैठे रहे. लेकिन, काउंसेलिंग चार बार स्थगित की जा चुकी. बिहार और झारखण्ड की सरकारें दो वर्ष में भी कोटे के विभाजन पर निर्भर नहीं ले पायीं. इसका कोई भी तर्क नहीं हो सकता. दोनों सरकारों की कमजोरी एवं अक्षमता ही उजागर होती है. अब यदि इन छात्रों को उपरोक्त कॉलेजों में प्रवेश मिल भी जाता है, तो उन्हें अपनी पसंद का ब्रांच नहीं मिलेगा. इसके अलावा वे एक सेमेस्टर पीछे चले जायेंगे. उस सेमेस्टर के सारे विषय स्वयं पढ़ कर उन्हें पूरक परीक्षा में बैठना होगा. चार-पांच महीनों में ही दो सेमेस्टर की पढ़ाई का बोझ उठाना होगा. अटेंडेंस और प्रायोगिक कक्षाओं की समस्या अलग से झेलनी होगी. कॉलेज की मेधा सूची में आने का सपना झारखण्ड सरकार की मेहरबानी के कारण प्रवेश लेने के पहले ही भ्रूण हत्या में बदल जायेगा. खैर यह सब तो प्रवेश लेने के बाद की समस्या है, पहले प्रवेश तो मिले.
रिजनल इंजीनियरिंग कॉलेजों में अखंड बिहार के छात्रों के लिए कोटा निर्धारित था. यह कोटा वर्तमान बिहार एवं नवोदित झारखण्ड राज्य में किस अनुपात में बांटा जाये, इसी पर विवाद दो वर्षों से जारी है. जमशेदपुर का रिजनल कॉलेज झारखंड में आ गया, तो यहां के मंत्री समरेश सिंह ने धमकी दे दी कि बिहार के छात्रों को यहां प्रवेश नहीं लेने देंगे. सामंती मानसिकता से ग्रस्त इन मंत्रियों ने सारी व्यवस्थाओं को अपना जागिर समझ लिया है,जहां देश के संविधान के खिलाफ कोई भी बयान दे देना वे अपना अधिकार समझते हैं. केन्द्र में भी भाजपा सरकार है और भाजपा के ही मुरली मनोहर जोशी शिक्षा मंत्री हैं तथा इस क्षेत्र में हर प्रकार के सुधार के पक्षधर हैं व तत्पर भी. ऐसे अनुकूल वातावरण में भी झारखंड के मंत्री और पदाधिकारी इतनी छोटी सी समस्या का हल मिल-बैठ कर नहीं निकाल पाये, तो वे झारखंड को रूर वैली, आइटी कॉरीडोर और आधुनिक आधुनिक टेक्नोलॉजी में अग्र्णी राज्य बनाने का सपना क्यों दिखाते हैं? यदि इतने छोटे, लेकिन अत्यावश्यक काम कर पाने में संकल्प एवं तत्परता का अभाव है, तो बड़े-बड़े सपने दिखाना एवं विदेश भ्रमण की योजनाएं बनाना तो अक्षम्य अपराध है. दो दिनी का काम, दो साल में भी नहीं कर पायी यह सरकार! अब इस तरह के सपने बेचना बंद कीजिए मुख्यमंत्री जी! आपके पास जो है, उसे तो दुरुस्त कर लीजिए. आपकी सरकार की त्रुटिपूर्ण नीतियों एवं उनके ढुलमुल क्रियानवयन से पीड़ित मेधावी छात्रों एवं उनके अभिभावकों की आह से आपकी सरकार भस्म हो जाये, तो इसके लिए आप एवं आपके मंत्री स्वयं दोषी होंगे, जिन्होंने सारे अधिकार होते हुए भी दो दिनों के काम को करने में दो साल लगा दिये और वह काम अभी भी बाकी है.

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