बाबा रामदेव लोकप्रियता के अंतिम शिखर पर पहुंचने को ही थे कि उनके अत्यधिक आत्मविश्वास ने उन्हें भटका दिया. स्वस्थ जीवन जीने की कला सिखाते-सिखाते कब वे उपदेशक बन गये उन्हें भी पता न होगा.चुनावों के इस मौसम में भारत स्वाभिमान जागरण अभियान छेड़कर और स्विस बैकों में जमा धनराशि वापस लाने की बातें करके उन्होंने अपनी सर्वाधिक महत्वपूर्ण पूंजी “निष्पक्षता “ को खो दिया है. सुनने में दोनों ही बातें अच्छी लगती हैं, आम आदमी तो उनकी बातों में भी आ जाएगा, लाखों वोट भी इधर उधर हो जाएंगे. विडंबना कि आज भी वे स्वयं को निष्पक्ष कहते हैं, लेकिन कोई व्यक्ति यदि ध्यान से सुने तो उनके अभियान का “गुप्त मकसद” स्पष्ट होकर सामने आ जाएगा. पहले वे बताते हैं कि इतने लाख करोड़ रुपए स्विस बैकों में भ्रष्ट भारतीयों ने जमा कर रखे हैं, यदि सब रुपए वापस आ जाएं और बांट दिये जाएं तो हर परिवार को लगभग तीन लाख रुपए मिल जाएंगे, हर गांव के विकास के लिये कई करोड़ रुपए उपलब्ध हो जाएंगे. आगे बढ़ते हुए वे कहते हैं कि जो पार्टी यह धन वापस लाने का वायदा करे, उसे ही वोट देना चाहिए. अपनी झूठी निष्पक्षता दिखाने के लिये पार्टी का नाम वे नहीं लेते. लेकिन हर कोई जानता है कि सिर्फ एक ही पार्टी यानि भाजपा यह वायदा बार बार दुहरा रही है. वे यह भी कहते हैं कि जो पार्टियां यह वायदा नहीं कर रहीं, उनका और उनके नेताओं का ही धन वहां जमा है, इसीलिये ये पार्टियां कोई भी वायदा करने से पीछे हट रही हैं. इसका निहितार्थ है कि भाजपा के सारे नेता और उसके पोषक धन कुबेर पाक साफ हैं.
काले धन की बातें करनेवाले बाबाजी क्या गंगा और गीता की सौगंध खाकर कह सकते हैं कि उनकी ”पतंजलि योगपीठ ” को चंदे में जो भी धनराशि मिली है उसका कम से कम आधा काला धन नही हैं. स्विटजरलैंड ही ऐसा देश है जो दोनों विश्व-युद्धों में किसी भी पक्ष में शामिल नहीं हुआ, आज भी कोई देश उसपर अपनी धौंस नही दिखला सकता. वहां के बैंक अपने खाताधारकों को छूट देते हैं कि वे अपने नाम से खाता रखने की जगह कोड नंबर से पहचाने जाएं, बैकों ने घोषणा कर रखी है कि वे अपने खाताधारकों की पहचान किसी को नहीं बताएंगे. आजतक उन्होंने एकभी खुलासा नहीं किया है. जिस दिन लोगों को जरा सा भी अंदेशा होगा कि वे निकट भविष्य में इस तरह का खुलासा करनेवाले हैं, वे धड़ाधड़ अपने रुपए निकाल लेंगे. अब इन बैकों ने ये सारे रुपए तिजोरी में बंद करके तो रखे नहीं होंगे, इधर उधर ब्याज पर लगा रखे होंगे, लाभ कमा रहे होंगे. क्या ये और इनकी सरकार चाहेगी कि यह धन बाहर जाए और वे कंगाल हो जाएं. जिन भारतीयों के पैसे वहां रखे हैं, वे जब चाहें ला सकते हैं, अब स्विस बैकों में रखने की जरूरत ही नही है, अपने देश में तो आज रियल्टी सेक्टर में कितना भी काला धन खपा दो, किसी को भनक भी न लगे. हां डॉलर को रुपए में बदलने में परेशानी है, लेकिन हवाला के माध्यम से वह भी आसानी से किया जा सकता है, आडवाणीजी से अधिक हवाला के बारे में और कौन जानता होगा, हवाला के अभियुक्तों की डायरी में इनका भी तो नाम था.
वायदा करने में क्या जाता है, यदि सत्ता में आए तो दो-चार पत्र स्विस सरकार को लिख देंगे, अखबारों की सुर्खियों में इन पत्रों का जिक्र हो जाएगा, बस वायदा पूरा हुआ. दूसरे दल तो एकदम बेवकूफी कर रहे हैं, उन्हें भी घोषणा कर देनी चाहिए कि स्विस बैकों से धन वापस लाने का हर संभव प्रयास वे करेंगे. आडवाणी जी तो कुछ इस प्रकार बोल रहे हैं गोया स्विस बैंक भारत सरकार के अंतर्गत आते हों, सत्ता में आते ही प्रधानमंत्रीजी हुक्म जारी करेंगे और स्विस बैंकों की पतलून गीली हो जाएगी, सारी जानकारी लेकर वे इनके दरबार में हाजिर हो जाएंगे.आडवाणी जी को बताना चाहिए कि स्विटजरलैंड पर ऐसा कौन सा दबाव वे बनाएंगे जिसके फलस्वरूप वहां के बैंक स्वयं को बर्बाद कर भारतीयों का सारा धन वापस कर देंगे. यदि ऐसा कुछ भी नही हुआ तो क्या आडवाणीजी अपनी सेना भेजकर स्विटजरलैंड पर आक्रमण करेंगे. उन्होंने तो अपना टाइम फ्रेम भी दिया है, सत्ता में आने के 100 दिनों के अंदर वे धन वापस ला देंगे.यदि वायदा पूरा नही हुआ तो क्या वे इस्तीफा देंगे या रामदेवजी उन्हे इस्तीफा देने को बाध्य करेंगे? धन्य हैं आडवाणीजी और धन्य हैं बाबा रामदेवजी. भारत-स्वाभिमान रक्षा हेतु इससे अच्छा वायदा तो होता, चीन के कब्जे से अपने देश की जमीन वापस लाने का.
कभी पटना के गांधी मैदान में एक चुनावी सभा के दौरान वी पी सिंह ने अपनी जेब से एक कागज निकालकर हवा में लहराया था और कहा था कि बोफोर्स घोटाले के सारे सबूत उनकी जेब में हैं, सत्ता में आने के हफ्ते भर के अंदर वे सारा भंडाफोड़ कर देंगे. उस चुनाव में बोफोर्स मुद्दे को राजीव गांधी के विरुद्ध विपक्षी दलों ने खूब भुनाया, जीते भी, लेकिन आज भी कोई खुलासा नहीं हुआ. उसके बाद विपक्षी दल भी लगभग 10 साल सत्ता में रहे, कुछ नही हुआ. आडवाणी जी अपने इस वायदे के बल पर भले ही गद्दी पा जाएं, लेकिन वे और बाबा रामदेव भी जानते हैं कि इस वायदे का कोई भी नतीजा नहीं निकलेगा.
भारतीयता की बात करनेवाले, भारतीय स्वाभिमान की बात करनेवाले रामदेवजी को निष्पक्षता का ढोंग त्यागकर अपनी पसंदीदा पार्टी के पक्ष में खुलकर आ जाना चाहिये, क्योंकि भारतीयता का पहला गुण है “सत्य बोलना और तदनुरूप आचरण करना”.लोकमान्य तिलक, महर्षि अरविंद, सुभाषचन्द्र बोस, वल्ल्भभाई पटेल, चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह आदि की दुहाई देनेवालों से मेरी यही गुजारिश है कि वे इनकी तरह ही सच बोलने का साहस दिखाएं, गांधी का नाम मैं नही ले रहा क्योंकि वे तो इन सबके गले की फांस हैं. उपरोक्त सभी महानुभाव कोर्ट में भी अंग्रेजों की नीतियों के खिलाफ बोले, जो भी किया या पब्लिक में बोले उसे खुलकर स्वीकार किया, माफी नही मांगी. आडवाणीजी हों, या उमा भारती या कल्याण सिंह- इन्हें खुलकर कहना चाहिए कि इन्होंने बाबरी मस्जिद गिराने के लिये लोगों को उकसाया, गिर जाने पर जश्न भी मनाया, यदि इन्होंने सबकुछ ठीक समझते हुए किया तो इन्हे कोर्ट में भी स्वीकार करना चाहिये कि इन्होंने मस्जिद गिरवाई क्योंकि उसका अस्तित्व ही इस देश के लिये कलंक था. अपनी विचारधारा के लिये जान भी जाती है तो जाए, झूठ क्यों बोलें. भगत सिंह तो बम फोड़ने के बाद भाग सकते थे, लेकिन उन्होंने कोर्ट की हर पेशी में अपने कृत्यों को स्वीकारा, तर्कों से उन्हें सही ठहराया, क्या यह साहस आज के इन नेताओं में है? वरुण गांधी ने भाषण में जहर उगला, फिर मुकर गये कि सी.डी के साथ छेड़ छाड़ की गयी, बाद मे माफी मांगकर पैरोल पर छूटे. उनकी पार्टी ने उन्हें गले लगाया, कहना चाहिये था कि जेल में ही रहते, पैरोल की क्या जरूरत थी. यही चरित्र सभी दलों के नेताओं का है, आप अपनी विचारधारा को सही समझते हैं तो उसपर डटे रहिए, मुकरते क्यों हैं. वरुण गांधी तो बच्चा है, उसी की तरह आग और जहर उगल कर अधिकांश नेता चुनाव संबंधी सारी आचार संहिताओं को ताक पर रख देते हैं, चुनाव जीत भी जाते हैं. आज जिसके खिलाफ बोलते हैं, कल सत्ता की मलाई चाटने के लिये उसके साथ हो लेते हैं, अगले दिन गरियाते हुए वापस आ जाते हैं.
बाबा रामदेव में तो सच बोलने का साहस होना अनिवार्य है, दुख इस बात का होता है कि इस चुनाव में उनकी छवि का अवमूल्यन हुआ है, सार्वभौमिक बनते बनते वे भी छुद्र इंसान ही बने रह गये. भारतीयता की बातें करते-करते वे हिंदुत्व के साथ तादात्म्य स्थापित करने लगते हैं. वे भूल जाते हैं कि हिंदुत्व में सबकुछ ठीक नहीं है, इसकी अच्छी बातों के साथ खराब बातें भी समय के साथ गड्मड हो गयी हैं. जातिप्रथा, अस्पृश्यता, नारियों की दोयम दर्जे की स्थिति एवं अनेक प्रकार की सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों ने इसके गौरव-स्तंभ पर कालिख पोत दी है. भारतीयता में सबकुछ अच्छा ही अच्छा है, उसी की बातें करें रामदेवजी. आपको तो हम विश्वगुरु के रूप में देखना चाहते हैं, किसी भी संकीर्ण दायरे में फंसने से स्वयं को बचाइये..
काले धन की बातें करनेवाले बाबाजी क्या गंगा और गीता की सौगंध खाकर कह सकते हैं कि उनकी ”पतंजलि योगपीठ ” को चंदे में जो भी धनराशि मिली है उसका कम से कम आधा काला धन नही हैं. स्विटजरलैंड ही ऐसा देश है जो दोनों विश्व-युद्धों में किसी भी पक्ष में शामिल नहीं हुआ, आज भी कोई देश उसपर अपनी धौंस नही दिखला सकता. वहां के बैंक अपने खाताधारकों को छूट देते हैं कि वे अपने नाम से खाता रखने की जगह कोड नंबर से पहचाने जाएं, बैकों ने घोषणा कर रखी है कि वे अपने खाताधारकों की पहचान किसी को नहीं बताएंगे. आजतक उन्होंने एकभी खुलासा नहीं किया है. जिस दिन लोगों को जरा सा भी अंदेशा होगा कि वे निकट भविष्य में इस तरह का खुलासा करनेवाले हैं, वे धड़ाधड़ अपने रुपए निकाल लेंगे. अब इन बैकों ने ये सारे रुपए तिजोरी में बंद करके तो रखे नहीं होंगे, इधर उधर ब्याज पर लगा रखे होंगे, लाभ कमा रहे होंगे. क्या ये और इनकी सरकार चाहेगी कि यह धन बाहर जाए और वे कंगाल हो जाएं. जिन भारतीयों के पैसे वहां रखे हैं, वे जब चाहें ला सकते हैं, अब स्विस बैकों में रखने की जरूरत ही नही है, अपने देश में तो आज रियल्टी सेक्टर में कितना भी काला धन खपा दो, किसी को भनक भी न लगे. हां डॉलर को रुपए में बदलने में परेशानी है, लेकिन हवाला के माध्यम से वह भी आसानी से किया जा सकता है, आडवाणीजी से अधिक हवाला के बारे में और कौन जानता होगा, हवाला के अभियुक्तों की डायरी में इनका भी तो नाम था.
वायदा करने में क्या जाता है, यदि सत्ता में आए तो दो-चार पत्र स्विस सरकार को लिख देंगे, अखबारों की सुर्खियों में इन पत्रों का जिक्र हो जाएगा, बस वायदा पूरा हुआ. दूसरे दल तो एकदम बेवकूफी कर रहे हैं, उन्हें भी घोषणा कर देनी चाहिए कि स्विस बैकों से धन वापस लाने का हर संभव प्रयास वे करेंगे. आडवाणी जी तो कुछ इस प्रकार बोल रहे हैं गोया स्विस बैंक भारत सरकार के अंतर्गत आते हों, सत्ता में आते ही प्रधानमंत्रीजी हुक्म जारी करेंगे और स्विस बैंकों की पतलून गीली हो जाएगी, सारी जानकारी लेकर वे इनके दरबार में हाजिर हो जाएंगे.आडवाणी जी को बताना चाहिए कि स्विटजरलैंड पर ऐसा कौन सा दबाव वे बनाएंगे जिसके फलस्वरूप वहां के बैंक स्वयं को बर्बाद कर भारतीयों का सारा धन वापस कर देंगे. यदि ऐसा कुछ भी नही हुआ तो क्या आडवाणीजी अपनी सेना भेजकर स्विटजरलैंड पर आक्रमण करेंगे. उन्होंने तो अपना टाइम फ्रेम भी दिया है, सत्ता में आने के 100 दिनों के अंदर वे धन वापस ला देंगे.यदि वायदा पूरा नही हुआ तो क्या वे इस्तीफा देंगे या रामदेवजी उन्हे इस्तीफा देने को बाध्य करेंगे? धन्य हैं आडवाणीजी और धन्य हैं बाबा रामदेवजी. भारत-स्वाभिमान रक्षा हेतु इससे अच्छा वायदा तो होता, चीन के कब्जे से अपने देश की जमीन वापस लाने का.
कभी पटना के गांधी मैदान में एक चुनावी सभा के दौरान वी पी सिंह ने अपनी जेब से एक कागज निकालकर हवा में लहराया था और कहा था कि बोफोर्स घोटाले के सारे सबूत उनकी जेब में हैं, सत्ता में आने के हफ्ते भर के अंदर वे सारा भंडाफोड़ कर देंगे. उस चुनाव में बोफोर्स मुद्दे को राजीव गांधी के विरुद्ध विपक्षी दलों ने खूब भुनाया, जीते भी, लेकिन आज भी कोई खुलासा नहीं हुआ. उसके बाद विपक्षी दल भी लगभग 10 साल सत्ता में रहे, कुछ नही हुआ. आडवाणी जी अपने इस वायदे के बल पर भले ही गद्दी पा जाएं, लेकिन वे और बाबा रामदेव भी जानते हैं कि इस वायदे का कोई भी नतीजा नहीं निकलेगा.
भारतीयता की बात करनेवाले, भारतीय स्वाभिमान की बात करनेवाले रामदेवजी को निष्पक्षता का ढोंग त्यागकर अपनी पसंदीदा पार्टी के पक्ष में खुलकर आ जाना चाहिये, क्योंकि भारतीयता का पहला गुण है “सत्य बोलना और तदनुरूप आचरण करना”.लोकमान्य तिलक, महर्षि अरविंद, सुभाषचन्द्र बोस, वल्ल्भभाई पटेल, चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह आदि की दुहाई देनेवालों से मेरी यही गुजारिश है कि वे इनकी तरह ही सच बोलने का साहस दिखाएं, गांधी का नाम मैं नही ले रहा क्योंकि वे तो इन सबके गले की फांस हैं. उपरोक्त सभी महानुभाव कोर्ट में भी अंग्रेजों की नीतियों के खिलाफ बोले, जो भी किया या पब्लिक में बोले उसे खुलकर स्वीकार किया, माफी नही मांगी. आडवाणीजी हों, या उमा भारती या कल्याण सिंह- इन्हें खुलकर कहना चाहिए कि इन्होंने बाबरी मस्जिद गिराने के लिये लोगों को उकसाया, गिर जाने पर जश्न भी मनाया, यदि इन्होंने सबकुछ ठीक समझते हुए किया तो इन्हे कोर्ट में भी स्वीकार करना चाहिये कि इन्होंने मस्जिद गिरवाई क्योंकि उसका अस्तित्व ही इस देश के लिये कलंक था. अपनी विचारधारा के लिये जान भी जाती है तो जाए, झूठ क्यों बोलें. भगत सिंह तो बम फोड़ने के बाद भाग सकते थे, लेकिन उन्होंने कोर्ट की हर पेशी में अपने कृत्यों को स्वीकारा, तर्कों से उन्हें सही ठहराया, क्या यह साहस आज के इन नेताओं में है? वरुण गांधी ने भाषण में जहर उगला, फिर मुकर गये कि सी.डी के साथ छेड़ छाड़ की गयी, बाद मे माफी मांगकर पैरोल पर छूटे. उनकी पार्टी ने उन्हें गले लगाया, कहना चाहिये था कि जेल में ही रहते, पैरोल की क्या जरूरत थी. यही चरित्र सभी दलों के नेताओं का है, आप अपनी विचारधारा को सही समझते हैं तो उसपर डटे रहिए, मुकरते क्यों हैं. वरुण गांधी तो बच्चा है, उसी की तरह आग और जहर उगल कर अधिकांश नेता चुनाव संबंधी सारी आचार संहिताओं को ताक पर रख देते हैं, चुनाव जीत भी जाते हैं. आज जिसके खिलाफ बोलते हैं, कल सत्ता की मलाई चाटने के लिये उसके साथ हो लेते हैं, अगले दिन गरियाते हुए वापस आ जाते हैं.
बाबा रामदेव में तो सच बोलने का साहस होना अनिवार्य है, दुख इस बात का होता है कि इस चुनाव में उनकी छवि का अवमूल्यन हुआ है, सार्वभौमिक बनते बनते वे भी छुद्र इंसान ही बने रह गये. भारतीयता की बातें करते-करते वे हिंदुत्व के साथ तादात्म्य स्थापित करने लगते हैं. वे भूल जाते हैं कि हिंदुत्व में सबकुछ ठीक नहीं है, इसकी अच्छी बातों के साथ खराब बातें भी समय के साथ गड्मड हो गयी हैं. जातिप्रथा, अस्पृश्यता, नारियों की दोयम दर्जे की स्थिति एवं अनेक प्रकार की सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों ने इसके गौरव-स्तंभ पर कालिख पोत दी है. भारतीयता में सबकुछ अच्छा ही अच्छा है, उसी की बातें करें रामदेवजी. आपको तो हम विश्वगुरु के रूप में देखना चाहते हैं, किसी भी संकीर्ण दायरे में फंसने से स्वयं को बचाइये..
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