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सरकार की नजर लग गयी इन कारखानों को

हाईटेंशन इंसुलेटर और इलेक्ट्रीक इक्विपमेंट फैक्टरियों के महाप्रबंधकों के साथ बैठक करते हुए मुख्यमंत्री महोदय ने कहा कि फैक्टरी प्रबंधन यदि राज्य सरकार के निर्देश में काम करे, तो हर संभव सहायता दी जायेगी. सरकारी उद्यमों का यही तो दुर्भाज्ञ रहा है कि उन्हें हमेशा सरकार के निर्देश में चलना पड़ा जिसका नतीजा हुआ कि इन्हें घाटे पर घाटा होता रहा और बंदी की नौबत आ गयी. मंत्रियों, विधायकों और बाहुबली नेताओं के लिए चरागाह रहे हैं ये सरकारी उद्यम. सरकार का काम है शासन करना है, न कि व्यापार करना और उद्योग चलाना. यदि इन मृत उद्योगों को पुनर्जीवित करना है तो इन्हें उद्योगपतियों को बेच देना चाहिये. इनके पतन में सरकार का बराबर हाथ रहा है. आज इनकी बंदी से भूखे मर रहे कर्मचारियों ने उस जमाने में खुलकर मौज की, बिना काम किए तनख्वाह ली, अधिक सुविधाओं के लिए हड़ताल की, काम रोका – उस समय ही और-और की हवस इन्हें परेशान किए रहती थीं. सरकारी कारखानों के कर्मचारियों के अंदर कार्य संस्कृति का अभाव हमेशा रहा है, लेकिन मजदूर यूनियन के झंडे तले अधिक सुविधाओं और वेतन के लिए छोटी-छोटी बात पर उत्पादन ठप्प करने में भी ये लोग आगे रहे हैं. इन कारखानों के प्रबंधकों ने हमेशा अपना घर भरने की ओर ध्यान दिया. हाईटेंशन के एक महाप्रबंधक ने तो करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति अर्जित की – ऐसी खबर हमेशा आती रही है. कच्चे माल की खरीद एवं तैयार माल की बिक्री हर जगह इन लोगों ने अपनी कमाई के रास्ते बना रखे थे. यह धन पटना तक बंटा था. मंत्रियों के लिए और उनके चमचों के लिए इनके अतिथि गृह हमेशा खुले रहते थे. होटलों में उन्हें हराकर पूरा खर्च ये अफसर वहन करते थे. मीट, मुर्गा, सुरा सुंदरी, सभी का उपभोग धड़ल्ले से चलता था. यह हाल सभी सरकारी उद्यमों के प्रबंधन का है. मरांडी जी की सरकार इन कारखानों को क्या दिशा-निर्देश दे पाएगी – उनके मंत्री अपने-अपने विभागों का काम समझकर संभाल लें, यही बहुत है. यदि इन कारखानों को फिर से चालू करना है, तो पहला काम होना चाहिए – सभी कामगारों की बैक करके इस बात पर उनकी सहमति प्राप्त करना कि वे पांच साल तक न्यूनतम मजदूरी पर काम करेंगे – कोई बोनस, कोई वेतनवृद्धि न की जायेगी. चिकित्सा सुविधा ई.एस.आई. के द्वारा जो उपलब्ध करायी जाती है, वही मिलेगा. इसी प्रकार का एग्रीमेंट अफसरों के साथ भी होना चाहिए. हर एग्रीमेंट कड़ाई से हो और कड़ाई से ही अगले पांच वर्षों तक लागू रहे. दोनों कारखानों को पुन: चालू करने के लिए कितनी पूंजी की जरूरत होगी, इसका आकलन किसी विशेषज्ञ एजेंसी से कराया जाए – उतनी पूंजी कर्ज के तौर पर बैंकों से मुहैया करायी जाए. इन कारखानों का पूरा उत्पादन राज्य विद्युत बोर्ड अपने यहां खपत करे और उसका भुगतान समय से करे. राज्य विद्युत बोर्ड अपने ट्रांसफार्मर की मरम्मत प्राइवेट पार्टियों से करा रहे हैं – सारा काम इलेक्ट्रिक इक्विपमेंट फैक्टरी को दिया जाना चाहिए. समय के अनुकूल अपने उत्पादों की रेंज, डिजाइन और गुणवत्ता में भी सुधार तत्काल करना होगा ताकि दूसरे राज्यों के विद्युत बोर्डों को भी माल आपूर्ति कर सके. मुश्किल कुछ नहीं है, सिर्फ सभी को लगन और मेहनत से काम करना होगा, जीने के लिए न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति के बराबर वेतन लेकर. कारखानों के बंद होने से कुछ कर्मचारी भूखे मर गये – यदि यह बात सच है तो इन कर्मचारियों को अब महसूस करना चाहिए कि कारखाना उनकी मां के समान है, उसे प्यार और सम्मान दें. उसे चलाते रहने में ही सबकी भलाई है. सोने का अंडा प्राप्त करने के लिए मुर्गी यदि हलाल कर दी गयी, तो रोज मिलने वाले अंडे से भी वंचित हो जाना पड़ता है. उन कामगारों को नजर रखनी होगी अपने अफसरों पर भी. जरा भी भ्रष्ट्राचार नजर आये, तो विजिलेंस डिपार्टमेंट को चुपचाप खबर दें यदि कुछ दिनों में कार्यवाही न हो तो और ऊपर भी चुपचाप सूचित करें. यदि ये कर्मचारी चाहें तो कोई भी अफसर गड़बड़ नहीं कर सकता. सारी फाइलें तो इन कर्मचारियों के नजर में ही रहती है, उनके हाथों से ही गुजरती है. सारे सरकारी कारखाना खुलने चाहिए, उनसे हजारों-लाखों लोगों को रोजी-रोटी मिलती है. लेकिन, इन कारखानों को मंत्रियों के चंगुल से बाहर निकालना होगा, उनकी नजर न लगे- ध्यान देना होगा. सरकार इन कारखानों की मदद करे, उनसे जुड़े नहीं – यही सबसे बड़ी मदद होगी.

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