समता पाटी की रैली, लालू की गरीब रैली और अब कांग्रेसी रैली- इन सभी के बीच- बीच में अलग- अलग झारखंडी नेता की अलग- अलग रैली, कम्युनिस्टों को तो खैर रैलियों की पार्टी ही कहा जा सकता है. चुनाव नजदीक है, अतः दिमागी रुप से दिवालिये सभी बिहारी नेताओं को चुनाव जीतने का एक ही नुस्खा नजर आ रहा है- रैली आयोजित कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना. रैलियों मे आयी भाड़े की भीड़ से मुग्ध ये नेता किन लोगों से वोट की उम्मीद करते हैं? क्या उनसे, जिन्हें रैलियों के लिए जबरन चंदा देना पड़ा. या उनसे, जिनकी बसें लूट ली गयीं, या उन दिहाड़ी मजदूरों से, जो दूरदराज के इलाकों से बस या ट्रेकर के अभाव मे पास के शहर मे मजदूरी के लिए न आ पाये और उनके पूरे परिवार को भूखे पेट सोना पड़ा या उन छोटे व्यापारियों से जो शहर आकर मछली, सब्जी जैसी चीजें न बेच पाये, या उनसे जिन्होंने हफ्तों पहले ट्रेन मे आरक्षण कराया, लेकिन रैली मे भाग लेनेवाले ऊधमियो के कारण ट्रेन पर ही न चढ पाये. या उनसे जिनका नियमित जीवन- तीन चार दिनों के लिए अस्त-व्यस्त हो गया, जरुरी काम बिगड़ गये, या उनसे जो अपने परिवार के किसी गंभीर रोगी को तत्काल अस्पताल नहीं पहुंचा पाए और वह मर गया.. चुनाव जीतकर कैसी अराजकता ये लोग ले आएंगे – इसका संकेत तो रैलियां आयोजित कर ये लोग पहले से दे रहे हैं.
चुनाव जीतने का रामबाण नुस्खा सामने है, लेकिन अफसोस कि किसी भी दल के गले वह उपाय उतरता ही नही. बिहार के हर शहर और कस्बे मे गंदगी का अंबार है. यदि कोई भी दल अपने कार्यकर्ताओं को प्रेरित कर उन्हें हर जगह इस प्रकार संगठित करे कि वे अगले चुनावों तक हर गली, हर मुहल्ले की सफाई कराने में जुट जायें तो आम नागरिक की सहानुभूति और वोट उनकी जेब मे होंगे. दूसरा मुद्दा है. भ्रष्टाचार के खिलाफ हर स्तर पर सक्रिय कदम . अस्पतालों, पुलिस थानों, प्रखंडों, ग्राम- पंचायतो%, सरकारी दफ्तरों में हर जगह भ्रष्टाचार अपनी पराकाष्ठा पर है. यदि किसी दल के कार्यकर्ता पूरे मन और लगन से इन जगहों पर जायें, लोगों के काम कराने में मदद करें, भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों पर निगरानी रखें तथा उनके खिलाफ लोगों को गोलबंद करें, भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन खड़ा कर दें, तो चुनावों का नतीजा उनके पक्ष मे होगा. हां, सिर्फ उपायुक्त कार्यालय के पास दस लोगों के तंबू लगाकर बैठने से आंदोलन नही होता. लेकिन हर दल का नेता अपने कमरे मे बैठकर चुनाव जीतना चाहता है
चुनाव जीतने का रामबाण नुस्खा सामने है, लेकिन अफसोस कि किसी भी दल के गले वह उपाय उतरता ही नही. बिहार के हर शहर और कस्बे मे गंदगी का अंबार है. यदि कोई भी दल अपने कार्यकर्ताओं को प्रेरित कर उन्हें हर जगह इस प्रकार संगठित करे कि वे अगले चुनावों तक हर गली, हर मुहल्ले की सफाई कराने में जुट जायें तो आम नागरिक की सहानुभूति और वोट उनकी जेब मे होंगे. दूसरा मुद्दा है. भ्रष्टाचार के खिलाफ हर स्तर पर सक्रिय कदम . अस्पतालों, पुलिस थानों, प्रखंडों, ग्राम- पंचायतो%, सरकारी दफ्तरों में हर जगह भ्रष्टाचार अपनी पराकाष्ठा पर है. यदि किसी दल के कार्यकर्ता पूरे मन और लगन से इन जगहों पर जायें, लोगों के काम कराने में मदद करें, भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों पर निगरानी रखें तथा उनके खिलाफ लोगों को गोलबंद करें, भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन खड़ा कर दें, तो चुनावों का नतीजा उनके पक्ष मे होगा. हां, सिर्फ उपायुक्त कार्यालय के पास दस लोगों के तंबू लगाकर बैठने से आंदोलन नही होता. लेकिन हर दल का नेता अपने कमरे मे बैठकर चुनाव जीतना चाहता है
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