फोकस छोटानागपुर सेमिनार में बोलते हुए माननीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने उपस्थित सभी सदस्यों, उद्यमियों और व्यवसायियों की सारी आशाओं पर अपने वाक चातुर्य के सहारे बहुत खूबी से पानी फेरा. अपमानित महसूस करते हुए भी शिष्टाचारवश किसी से कुछ कहते न बना.
सभी को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने टैक्स की चोरी के लिए विशेष रूप से व्यापारी वर्ग को लथाड़ने में कोई कसर बाकी न रखी. उनहोंने स्पष्ट कह दिया कि व्यवसायी वर्ग टैक्स की चोरी के लिए ढेरों रास्ते निकाल लेता है, कानून में अनेक छिद्र खोज लेता है, जबकि नौकरी करने वाले पूरे टैक्स का भुगतान करने को बाध्य होते हैं. क्या सहानुभूति दिखायी ‘बेचारी’ सरकारी नौकरी के प्रति.
मंत्री महोदय यहां चूक गये. सभी जानते हैं कि अधिकांश सरकारी कर्मचारियों और पदाधिकारियों की ‘ऊपरी’ आमदनी, उनके मासिक वेतन से कई गुनी अधिक होती है. बिना किसी मेहनत के उपार्जित इस ऊपरी आमदनी पर कितना टैक्स ये लोग देते हैं? जनता अपने काम के लिए इनके पास दौड़ती रहती है और कुत्तों की तरह दुरदुरायी जाती है. उसकी मजबूरी और अपनी ताकत का लाभ उठाकर ये उसे ब्लैकमेल करते रहते हैं. दूसरी ओर एक व्यापारी सुबह से रात तक खच्चर की तरह अपने काम में लगा रहता है. खून-पसीने की कमाई का एक हिस्सा टैक्स के रूप में अदा करते हैं और जब देखता है कि उस रकम से किस प्रकार ये सरकारी कर्मचारी और पदाधिकारी गुलछर्रे उड़ा रहे हैं, उनकी अट्टालिकाएं खड़ी हो रही हैं, उनकी बीबियां और कुत्ते सरकारी गाड़ियों में हवाखोरी कर रहे हैं, तब उसका मन निराशा से भर जाता है. जब वह वही धन जयललिता और सुखराम जैसे दिग्गज राजनेताओं के घरों से बरामद होता है, तब तो उसकी निराशा घृणा में बदल जाती है. टूटी-फूटी सड़कें बदहाल स्कूल और अस्पताल, विद्युत और जल की दयनीय आपूर्ति, राजीव गांधी जैसे नेताओं की स्वीकारोक्ति कि योजनाओं के लिए आवंटित धन का पंद्रह प्रतिशत की काम में आता है, बाकी तो बंदरबांट में चला जाता है – यह सब कुछ देखते और जानते हुए किसका दिल गवाही देगा कि वह अपनी गाढ़ी कमाई का एक बड़ा हिस्सा टैक्स के रूप में सरकारी खजाने में जमा कर दे, जिसकी चाबी लालू प्रसाद जैसे राजनेताओं के हाथ में हो. अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा वह व्यवसायी तो पहले ही राजनीतिक दलों, सामाजिक संस्थाओं और पूजा पंडालों को चंदे के रूप में दे चुका होता है. रहा-सहा धन गली-मोहल्ले और शहर के गुंडे-रंगदार उससे वसूलते हैं. टैक्स जमा करने के लिए बचता कहां है, उसके पास कुछ
यह बात शत-प्रतिशत सही है कि कोई भी राष्ट्र तभी प्रगति कर सकता है, जब उसके नागरिक ईमानदार से कर अदायगी करें और उस कर का एक-एक पैसा सरकार जन कल्याण एवं विकास योजनाओं में लगाये. तो ऐसा क्यों होता है कि ये व्यवसायी धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं को तो मुक्तहस्त दान देते है, लेकिन टैक्स जमा करने से कतराते हैं. कारण बस यही है – उन्हें सरकार पर रत्ती भर विश्वास नहीं. सिन्हाजी के समक्ष इस क्षेत्र की समस्याओं से संबंधित चिरलम्बित मांगें इसलिये रखी गयीं, क्योंकि वे यहां के विधायक रह चुके हैं – उन्होंने उस समय उन मांगों का अपनी प्रचार सभाओं में खुल कर इस्तेमाल किया था. जनता से वायदे भी किये थे, मगर आज जनता को मानसिकता बदलने का उपदेश मिल रहा है. व्यंग्य वाण मिल रहे हैं कि ‘चेम्बर अध्यक्ष ओम बाबू शायद अपनी सूची में रांची के सिनेमाघरों में अच्छी फिल्में चलाने की मांग भी शामिल करने से चूक गये’.
सिन्हाजी! आज जिस मानसिकता की बातें आप कर रहे हैं, उस समय वह कहां थी, जब ऐसी ही मांगों के समर्थन में आप सत्ता पक्ष की नाक में दम किये रहते थे? टैक्स न जमा करने वाले व्यावसायियों से आपको इतनी शिकायतें हैं तो उस समय आप कहां थे, जब आपकी पार्टी ने सुखराम और जयललिता जैसे महाभ्रष्ट राजनेताओं से हाथ मिलाकर उन्हें संरक्षण दिया? क्या उनके राजप्रसाद भरने के लिए जनता टैक्स जमा करे? आपने जो कुछ भी कहा, अक्षरश: सही है. हमें हर चीज के लिए सरकार का मुंह नहीं जोहना चाहिए. ईमानदारी से टैक्स जमा करना चाहिए. लेकिन क्या आप अपनी पार्टी के नेताओं की मानसिकता बदल पाएंगे? आप एक कर्तव्यनिष्ठ और मेहनती प्रशासन तंत्र दीजिए, विकास योजनाओं को गति दीजिए, कल्याणकारी परियोजनाओं प्रभावी बनाइये, सरकारी काम-काज में जवाबदेही और पारदर्शिता का समावेश कीजिए. तब अच्छे कामों के लिए मुक्तहस्त दान करने वाला व्यवसायी वर्ग पीछे नहीं रहेगा. ईमानदारी से अपने समूचे कर का भुगतान करेगा. आप टोलटैक्स की क्या बातें करते हैं, यह वर्ग आपकी योजनाओं के लिए धन भी, सहायता एवं कर्ज के लिए उपलब्ध करायेगा. अब बंद कीजिए, वर्ल्ड बैंक से कर्ज लेकर सरकारी कर्मचारियों एवं राजनेताओं का घर भरने का चलन, आप और आपकी सरकार सिर्फ दिखाये अपनी साफ नीयत और पक्का इरादा- जयललिता और सुखराम जैसे स्वयंसिद्ध भ्रष्ट शिरोमणियों का परित्याग कर राष्ट्र निर्माण के लिए सर्वस्व त्यागने वाले भामाशाहों की कमी नहीं है आज भी यहां. जरूरत है आपकी पार्टी के साहस की. क्या है वह साहस आप में और आपकी सरकार में?
सभी को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने टैक्स की चोरी के लिए विशेष रूप से व्यापारी वर्ग को लथाड़ने में कोई कसर बाकी न रखी. उनहोंने स्पष्ट कह दिया कि व्यवसायी वर्ग टैक्स की चोरी के लिए ढेरों रास्ते निकाल लेता है, कानून में अनेक छिद्र खोज लेता है, जबकि नौकरी करने वाले पूरे टैक्स का भुगतान करने को बाध्य होते हैं. क्या सहानुभूति दिखायी ‘बेचारी’ सरकारी नौकरी के प्रति.
मंत्री महोदय यहां चूक गये. सभी जानते हैं कि अधिकांश सरकारी कर्मचारियों और पदाधिकारियों की ‘ऊपरी’ आमदनी, उनके मासिक वेतन से कई गुनी अधिक होती है. बिना किसी मेहनत के उपार्जित इस ऊपरी आमदनी पर कितना टैक्स ये लोग देते हैं? जनता अपने काम के लिए इनके पास दौड़ती रहती है और कुत्तों की तरह दुरदुरायी जाती है. उसकी मजबूरी और अपनी ताकत का लाभ उठाकर ये उसे ब्लैकमेल करते रहते हैं. दूसरी ओर एक व्यापारी सुबह से रात तक खच्चर की तरह अपने काम में लगा रहता है. खून-पसीने की कमाई का एक हिस्सा टैक्स के रूप में अदा करते हैं और जब देखता है कि उस रकम से किस प्रकार ये सरकारी कर्मचारी और पदाधिकारी गुलछर्रे उड़ा रहे हैं, उनकी अट्टालिकाएं खड़ी हो रही हैं, उनकी बीबियां और कुत्ते सरकारी गाड़ियों में हवाखोरी कर रहे हैं, तब उसका मन निराशा से भर जाता है. जब वह वही धन जयललिता और सुखराम जैसे दिग्गज राजनेताओं के घरों से बरामद होता है, तब तो उसकी निराशा घृणा में बदल जाती है. टूटी-फूटी सड़कें बदहाल स्कूल और अस्पताल, विद्युत और जल की दयनीय आपूर्ति, राजीव गांधी जैसे नेताओं की स्वीकारोक्ति कि योजनाओं के लिए आवंटित धन का पंद्रह प्रतिशत की काम में आता है, बाकी तो बंदरबांट में चला जाता है – यह सब कुछ देखते और जानते हुए किसका दिल गवाही देगा कि वह अपनी गाढ़ी कमाई का एक बड़ा हिस्सा टैक्स के रूप में सरकारी खजाने में जमा कर दे, जिसकी चाबी लालू प्रसाद जैसे राजनेताओं के हाथ में हो. अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा वह व्यवसायी तो पहले ही राजनीतिक दलों, सामाजिक संस्थाओं और पूजा पंडालों को चंदे के रूप में दे चुका होता है. रहा-सहा धन गली-मोहल्ले और शहर के गुंडे-रंगदार उससे वसूलते हैं. टैक्स जमा करने के लिए बचता कहां है, उसके पास कुछ
यह बात शत-प्रतिशत सही है कि कोई भी राष्ट्र तभी प्रगति कर सकता है, जब उसके नागरिक ईमानदार से कर अदायगी करें और उस कर का एक-एक पैसा सरकार जन कल्याण एवं विकास योजनाओं में लगाये. तो ऐसा क्यों होता है कि ये व्यवसायी धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं को तो मुक्तहस्त दान देते है, लेकिन टैक्स जमा करने से कतराते हैं. कारण बस यही है – उन्हें सरकार पर रत्ती भर विश्वास नहीं. सिन्हाजी के समक्ष इस क्षेत्र की समस्याओं से संबंधित चिरलम्बित मांगें इसलिये रखी गयीं, क्योंकि वे यहां के विधायक रह चुके हैं – उन्होंने उस समय उन मांगों का अपनी प्रचार सभाओं में खुल कर इस्तेमाल किया था. जनता से वायदे भी किये थे, मगर आज जनता को मानसिकता बदलने का उपदेश मिल रहा है. व्यंग्य वाण मिल रहे हैं कि ‘चेम्बर अध्यक्ष ओम बाबू शायद अपनी सूची में रांची के सिनेमाघरों में अच्छी फिल्में चलाने की मांग भी शामिल करने से चूक गये’.
सिन्हाजी! आज जिस मानसिकता की बातें आप कर रहे हैं, उस समय वह कहां थी, जब ऐसी ही मांगों के समर्थन में आप सत्ता पक्ष की नाक में दम किये रहते थे? टैक्स न जमा करने वाले व्यावसायियों से आपको इतनी शिकायतें हैं तो उस समय आप कहां थे, जब आपकी पार्टी ने सुखराम और जयललिता जैसे महाभ्रष्ट राजनेताओं से हाथ मिलाकर उन्हें संरक्षण दिया? क्या उनके राजप्रसाद भरने के लिए जनता टैक्स जमा करे? आपने जो कुछ भी कहा, अक्षरश: सही है. हमें हर चीज के लिए सरकार का मुंह नहीं जोहना चाहिए. ईमानदारी से टैक्स जमा करना चाहिए. लेकिन क्या आप अपनी पार्टी के नेताओं की मानसिकता बदल पाएंगे? आप एक कर्तव्यनिष्ठ और मेहनती प्रशासन तंत्र दीजिए, विकास योजनाओं को गति दीजिए, कल्याणकारी परियोजनाओं प्रभावी बनाइये, सरकारी काम-काज में जवाबदेही और पारदर्शिता का समावेश कीजिए. तब अच्छे कामों के लिए मुक्तहस्त दान करने वाला व्यवसायी वर्ग पीछे नहीं रहेगा. ईमानदारी से अपने समूचे कर का भुगतान करेगा. आप टोलटैक्स की क्या बातें करते हैं, यह वर्ग आपकी योजनाओं के लिए धन भी, सहायता एवं कर्ज के लिए उपलब्ध करायेगा. अब बंद कीजिए, वर्ल्ड बैंक से कर्ज लेकर सरकारी कर्मचारियों एवं राजनेताओं का घर भरने का चलन, आप और आपकी सरकार सिर्फ दिखाये अपनी साफ नीयत और पक्का इरादा- जयललिता और सुखराम जैसे स्वयंसिद्ध भ्रष्ट शिरोमणियों का परित्याग कर राष्ट्र निर्माण के लिए सर्वस्व त्यागने वाले भामाशाहों की कमी नहीं है आज भी यहां. जरूरत है आपकी पार्टी के साहस की. क्या है वह साहस आप में और आपकी सरकार में?
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